हिंदी दिन का महत्व
सुमित्रानंदन पंत
जन्म। :-20 मई 1900कसानी
,उत्तर-पश्चिम प्रांत, ब्रितानीभारत
मृत्यु :- 28 दिसम्बर 1977 (उम्र 77)
इलाहाबाद उत्तर प्रदेश, भारत
पेशा :- लेखक, कवि
राष्ट्रीयता :-भारतीय
शिक्षा। :- हिन्दी साहित्य
विषय। :- संस्कृत
खिताब :- पद्म भूषण (1961),
ज्ञानपीठ पुरस्कार (1968)
छायावाद बच्चन है वह मेरे बहुत बड़े मित्र रहे हैं,मैं उसके घर में इतना रहा हूं कि बहुत ज्यादा रहा हो और वैसे छोटे-मोटे मतभेद बराबर होते रहते हैं मित्रों में लेकिन इससे हमारी मित्रता पर कोई फर्क नहीं पड़ा मैं उन्हें परम मित्र मानता हूंl तेजी जी और बच्चन को मैं अपने परम मित्र में मानता हूं सब कवियों में,नरेंद्र तो मेरे बाद भाई सा रहा है उसके भी अपनी एक भावना का संसार रहा हैl बच्चन ,नरेंद्र ,दिनकर को कौन बोल सकता है इस युग का सूर्य है मैं कहता हूं तो सूर्य तो दिनकर रहे ही है, तो हमारा जो ग्रुप था उसमें एक से एक प्रकाश केंद्र रहे हैं और इससेमैं अपने आप को भाग्यशाली मानता हु l
• साक्षात्कारकर्ता : पंथजी अगर आपको पूरी की पूरी जिंदगी दोबारा जीने को मिले तो कौन सी ऐसी इच्छा है जो अपूर्ण रह गई है उसे जरूर पूरा करना चाहेंगे?
• पंतजि : मैं चाहता हूं कि इस संसार में भीक्षमता मिट्टीए मैं चाहता हूं कि यह संसार मनुष्य के लिए रहने के लायक हो जाए, यह धरती मानवीय हो जाए,इसमें स्त्री-पुरुष का चाहे संबंध हो, चाहे पुरुष-पुरुष का संबंध हो ,इस तरह का एक कंकूलित या सविज संबंध बन जाए जो हम स्वर्ग की कल्पना करते हैं वह धरती पर ही स्वीकार हो जाए और यह तो बिल्कुल निश्चिट स्वर्ग है और कहीं नहीं है मनुष्य की भीतर है, उसे मनुष्य को अपने भीतर के स्वर्ग को इस धरती पर प्रतिष्ठित करना हैl समस्त आगे आने वाला पर्यटन इस और है यह आज जो इतना संस्कृत का युग है, इतना बदलाव दिखता है और ऐसे न्यूक्लियर वेपंस बना रहे हैं यह तो जैसे की पगार आता है ना बसंत में पहले सब पत्ते झड़ते हैं तो यह तो यह डिसइंटीग्रेशन युग है, पुराने मूल्य विघादित हो रहे हैंl
• साक्षात्कारकर्ता : पेंटजी आपका हमेशा से एक खास उपन्यास रहा है कपड़ों के बारे, में बादलों के, बारे में और एक पूरी रूप छाता बनी रहती है पढ़ने वालों के मनमे हमेशा से यह कैसे अपने अपना एक विनय बनाया है?
• पंत जी : क्या बताऊं अगर मैं यह का सकता हूं कि मैं जन्मजातक्या बताऊं अगर मैं यह कह सकता हूं कि मैं जन्मक्या बताऊं अगर मैं यह कह सकता हूं कि मैं जन्मक्या बताऊं अगर मैं यह कह सकता हूं कि मैं जन्मजात हिप्पी पैदा हुआ हो मैं तो बचपन से ही नेपोलियन का चित्र दिखा था जब मैं 4th क्लास में था तब से उसके घुंघराले बालों ने बहुत आकर्षित किया तो मैं बोल रख दिए तभी तो मैं टीचर बन और क्योंकि मैं घर में सबसे लाडला था, छोटा था ,तो पोशाक भी मैंने तरह-तरह के पहने हैं, मेरे कोर्ट भी खास ढांगे होते थे और ताई में पहेन्ता था और टोपी भी तरह-तरह के पहेन्ता था , मखमल के कपड़े मुझे बहुत पसंद थे मैं बहुत पहना था लेकिन फिर ऐसा हुआ कि मैं साहित्य के क्षेत्र में आ गया और वहां इलाहाबाद में एक दिन द्विवेदी जी मिले तो उनके मित्रों ने मेरे गले की ताई खींच कर फेंक दी तब से मैंने सोचा कि ऐसे टूटा कोर्ट अच्छा नहीं लगता तो बंद गला का कोट पहनेे लगा और तब तो मैं भारतीय वृद्धा अवस्था में जितनी सादगी हो सकती थी पोशाक में, वेशभूषा में वह सादगी पसंद करता हूं लेकिन छुटकन से मुझे रूप और भाव का बहुत बड़ा भारी संबंध मिलता रहा है और मैं अपने को सजाया है मेरे घर में अगर मेरी बीवी या कोई होता तो मैं उससे सजता तो कोई बात नहीं रूप का मैंन हमेशा आदर किया है और मुझे खुद अपना ही शेयर पसंद आया है और मैंनेसी को सजाया है मैं और क्या कर सकता हूं उसमेंl
एक छोटी सी आपको एक रचना सुना देता हूं 'नई दृष्टि'...
खुलागए चंद के बंद प्रसाद के रागत पाश
अब गीत मुक्त और युग वर्णी बहती अयाश
बंगे कलात्मक भव जगत के रूपनव
जीवन संघर्ष देता सुख लता ललाम
सुंदर, शिव, सत्य काल के कल्पित मैपमैन बन गए स्तूर जगजीवन से उपयोग एक प्राण मानव स्वभाव ही
मानव आदर्श स्विकार कर्ता अपूर्ण को पुरा और असुंदर को सुंदर पर प्रतिबंध लगाता है।
मेरे अभिप्राय :-
• हमे हमेशा स्त्रियों का सम्मान करना चाहिए। अपने काम पर ही ध्यान रखना चाहिए। अपने काम को महत्व देकर ही हमारे जिवन में आगे बढ़ सकते है।
• स्वभाव में मतभेद होना जरूरी है लेकिन उससे मित्रता में कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। • उनकी ये बात मुझे बहोत अच्छी लगी के उन्होंने कहा के औरत का तन से नही औरत को मन से सम्मान देना चाहिए।
• अपने जीवन की मज्जिल पाने के लिए कुछ भी त्याग करना वो उनसे शिखा जाता है।